Tuesday, December 13, 2022

ब्रिटिश कालीन तुस्मा का एक मात्र स्कूल प्रायमारी स्कूल जो अपनी बदहाली पर आँसू बहा रहा - जीर्णोद्धार की आवश्यकता -

 ब्रिटिश कालीन तुस्मा का एक मात्र स्कूल प्रायमारी स्कूल जो अपनी बदहाली पर आँसू बहा रहा - जीर्णोद्धार की आवश्यकता -

ग्राम तुस्मा में स्थापित शासकीय प्राथमिक शाला जो अपनी बदहाली पर आँसू बहा रहा है।यह स्कूल ब्रिटिश अंग्रेजी शासन काल में स्थापित हुई थी।इसकी स्थापना  सन 1927 में हुई।इस स्कूल में सबसे पहले शिक्षक श्री नंदकेशर उपाध्याय जी,इनके बाद श्री रामरक्षा कठौतिया जी,फिर श्री रामलाल कश्यप जी,अमृत शर्मा जी,सहित अनेक शिक्षक रहे। जिन्होंने इस स्कूल को और यहाँ की शिक्षा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। जिनका आशीर्वाद आसपास के लगभग 30 किलोमीटर क्षेत्र के बच्चों को मिलता रहा।आज यह स्कूल विरान और खंडहर हो गया है।जहाँ कभी गुरुकुल की तरह गिनती पहाड़े,इमला, और 52 अक्षरों के वर्ण गुंजा करते थे।

यह खंडहर में तब्दील हो गया है। इसकी खंडहरता,प्राचीनता को देखकर सहज में अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ पर चार-चार पीढ़ियों ने शिक्षा प्राप्त की।जिसमें दादा,परदादा,पिता और पोते बच्चे शामिल हैं।जिनमें इसी ग्राम से स्व श्री मोहित राम पटेल जी,पुत्र श्री पुष्कल प्रसाद पटेल जी, पोते अशोक पटेल,पवन पटेल शिक्षक बने।और संयोग की बात है की इसी स्कूल में तीसरे पीढ़ी के रूप में पवन कुमार पटेल दृष्टिहिन होकर यहीं सहायक शिक्षक नियुक्त होकर गाँव के बच्चों को ब्रेल लिपि में शिक्षा प्रदान कर रहे हैं।

यह स्कूल अपने आप मे एक विद्यापीठ से कम नहीं रहा है।जहाँ पर पढ़के यहाँ के ग्रामवासी सहित आसपास के लोग शिक्षित हो पाए।यह स्कूल अपने आप मे बहुत कुछ यादें,और सुखद दौर को समेटे हुए हैं।जिनको आज भी उस स्कूल की जीर्ण-शीर्ण दिवारें,कमरें,बरामदें,वहाँ के प्रांगण सुंदर अपनी गाथा कहते हुए सुनाई देते हैं।यह वही स्कूल है जहाँ की प्रातः काल घंटी बजने से यहाँ के ग्रामवासी अपना काम शुरु करते थे। और शाम को इसी घंटी के बजने से काम खत्म करते थे।

इस स्कूल के आसपास से गुजरने से आज भी उस घंटी की प्रखर ध्वनि गूंजती हुई सुनाई देती है।वह दिन आज भी हमारी आँखों के सामने चित्र की भाँति उपस्थित हो जाता है,जब यहाँ की घंटी को शाला खुलने के समय बजाने का सौभाग्य मिलता था। उस घंटी को बजाना मानो हमारे लिए  किसी विजय घोष और सम्मान से कम नहीं होता था। इसके लिए बाकायदा समय पर स्कूल पहुंचना होता था।और जिसको वह कांसे की घंटी मिल जाती फिर तो लगातार आध-एकाध घंटे के लिए फुर्सत।और फिर शुरु होती थी प्रार्थना,बाल वाटिका जो हमारे लिए सौभाग्य की बात हुआ करती थी।स्कूल के पीछे मे एक गहरा कुआँ भी है जिसमें का पानी ना जाने कितने घरों के मावेशियों, का प्यास बुझाया और उस स्कूल में लगे साग-भाजियों ने कितना

 भरा -भरा किया गिनती लगा पाना सम्भव नही है।

यहाँ के बच्चे सकाउट गाइड में हमेशा अव्वल हुआ करते थे जो पूरे एरिया के लिए मिशाल माने जाते थे।यहाँ की पढ़ाई इतनी चुस्त-द्रुस्त हुआ करती थी की मजाल है की कोई ऊँगली उठा दे।तभी तो यहाँ जिन्होंने पढ़ाई की,उनका जीवन संवर गया। इसीलिए तो इस स्कूल का अपना अलग पहचान हुआ करती थी।इस क्षेत्र मे यही एक मात्र स्कूल हुआ करता था।जो अपने जमाने में प्राख्यात था।

 वैसे तो इस स्कूल में पढ़के सैकड़ों अधिकारी कर्मचारी बने।और आज भी बड़े बड़े अधिकारी बनके सेवा दे रहे है।जिनमें कई बच्चे एम बी बी एस डॉक्टर जिनमें श्री प्रदीप कुम्भकार,सहित इंजीनियर,अध्यापक,व्याख्याता बनके सेवा

दे रहे हैं।और कितने शिक्षक सेवा देकर सेवा निवृत होकर उस जमाने के साक्षी हैं।


पर दुख कि बात यह है कि उस स्कूल कि चीख-पुकार और उसकी बदहाली को कोई सुन नही पा रहा है।आवश्यकता और गुहार है तो शासन प्रशासन जनप्रतिनिधियों से जो उस स्कूल की बदहाली को देख कर,उसी जगह नया शाला भवन बनवाए।ताकि इस ग्राम तुस्मा का यह गौरव और प्रतिष्ठा का प्रतिक शाला भवन अपनी ऐतिहासिकता को बरकरार रख सके।और शिक्षा का अलख जगाता रहे।



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